FIR और ZERO FIR में क्या है अंतर? कैसे दर्ज कराते हैं रिपोर्ट



Law


FIR और ZERO FIR में क्या है अंतर? कैसे दर्ज कराते हैं रिपोर्ट

एफआईआर (FIR) के बारे में तो ज्यादातर सभी जानते हैं। पर क्या आपने जीरो एफआईआर (Zero FIR) के बारे में सुना है? आखिर क्या होती है जीरो एफआईआर

सबसे पहले जानते हैं क्या है एफआईआर

एफआईआर यानी फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (First Information Report) एक प्रकार का दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर पुलिस अपनी कार्यवाई शुरू करती है, अपराधी को सजा दिलाने के लिए। हिंदी में एफआईआर (FIR) को प्राथमिकी कहते हैं। बता दें कि अपराध के लिए पुलिस के पास कार्रवाई करने के लिए जो सूचना हम दर्ज कराते हैं उसे प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी कहते हैं। एफआईआर (FIR) में पुलिस आरोपी को वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है। यह केवल संज्ञेय अपराधों जैसे हत्या, दुष्कर्म, चोरी, हमला आदि में दर्ज की जाती है।
एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) क्या होता है
असंज्ञेय अपराध जैसे गाली-गलौज जैसी छोटी घटनाओं में पुलिस के पास किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं होता है। ऐसे केस को पहले ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है। ऐसे ही मामलों में एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) दर्ज की जाती है। 

indian law


एनसीआर और एफआईआर में अंतर

अगर आपका कोई सामान चोरी हो गया है तो एफआईआर (FIR) दर्ज की जाएगी।
एफआईआर (FIR) के बाद दोषी को सजा दिलाने के लिए पुलिस कार्रवाई शुरू करती है। आपकी चोरी हुई किसी चीज के दुरुपयोग होने का खतरा होता है। ऐसे में आप अपराध में फंस सकते हैं, जो आपने किया ही नहीं है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए एफआईआर जरूर दर्ज करानी चाहिए। घटना के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। देरी होने पर स्पष्ट कारण भी देना जरूरी हो जाता है।
क्या होती जीरो एफआईआर
सामान्यत: एफआईआर (FIR) घटनास्थल के पास के थाने में ही दर्ज करानी चाहिए। लेकिन अगर पीड़ित को किसी परिस्थितिवश बाहरी थाने में शिकायत दर्ज करानी पड़ रही है, तो बाद में शिकायत को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। ये किसी सीनियर ऑफिसर के माध्य से ही ट्रांसफर करा सकते हैं। यानी घटनास्थल की सीमा से अलग किसी दूसरे इलाके के थाने में जो प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है, उसे जीरो एफआईआर कहते हैं। बता दें कि जीरो एफआईआर को NIL FIR  भी कहते हैं। 
indian law

कैसे दर्ज कराएं जीरो एफआईआर

यदि आर जीरो एफआईआर (FIR) दर्ज कराते हैं तो आपको खुद थाने जाने की जरूरत नहीं है। कोई रिश्तेदार या चश्मदीद भी इस एफआईआर को दर्ज करा सकता है। बता दें कि घटना की तारीख के साथ समय और अपराधी की जानकारी होनी जरूरी है। ध्यान दें कि एफआईआर में एक क्राइम नंबर होता है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में रेफरेंस के तौर पर किया जाता है। फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट की कॉपी पर मुहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर जरूरी हैं

सामान्यत हत्या, रेप एवं एक्सीडेंट जैसे अपराध जगह देखकर नहीं होते है I या फिर ऐसे मामले में यह भी हो सकता है, कि अपराध किसी उपरोक्त थाने की सीमा में न गठित हो, गंभीर मामले में तुरंत कार्यवाही की मांग होती है, परंतु बिना FIR के कानून एक कदम भी आगे नहीं चल पाता है I ऐसे मौकों में मात्र कुछ प्रत्यक्षदर्शी (आई विटनेस) एवं संबंधित जानकारियों के साथ इसकी शिकायत नजदीकी पुलिस स्टेशन में करवा सकते हैं I

indian law


संजय शर्मा v/s झारखंड राज्य -2017

इस मामले में रेप की पीड़िता ने Zero FIR नई दिल्ली कमला मार्किट पुलिस स्टेशन में दर्ज़ करवाई तथा बाद में मामले को घटना स्थल से सम्बंधित पुलिस थाने बोकारो/रांची झारखंड में हस्तांतरित किया गया I
कोई भी पुलिस अधिकारी सिर्फ यह कहकर आपकी FIR लिखने से मना नहीं कर सकता कि यह मामला हमारे सीमा से बाहर का है I
सामान्य FIR की तरह ही जीरो FIR भी लिखित या मौखिक में दर्ज़ करवाई जा सकती है I आप चाहे तो पुलिस अधिकारी से रिपोर्ट को पढ़ने का भी अनुरोध कर सकते हैं I जीरो FIR लिखने के बाद जाँच अधिकारी अविलंब उस केस मामले  की शुरुआती जांच भी करेगा, ताकि शुरुआती साक्ष्य नष्ट न हों जाये I ध्यान रहे लिखित कंप्लेंट करते वक्त FIR में हस्ताक्षर कर एक  कॉपी प्राप्त करना ना भूलें

indian law


indian law






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साइबर क्राइम की ऑनलाइन करें शिकायत

चेक बाउंस होने पर क्या करें: जानिए पूरी कानूनी प्रक्रिया अंतर्गत एन0आई एक्‍ट 138

कपल कोर्ट मैरिज कैसे करें ? How to do couple court marriage?