जमानत के प्रावधान ( How to Get Bail)








       जमानत के प्रावधान




जमानत के प्रावधान ( How to Get Bail)  


जमानत क्या है ?


जमानत किसी विशेष आपराधिक मामले के अंतिम निपटारा होने से पहले आरोपी को अस्थाई स्वतंत्रता प्रदान करने का एक कानूनी तरीका है

गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी न्यायालय से अग्रिम जमानत की माँग करता है तो कभी अंतरिम जमानत की या फिर रेग्युलर बेल के लिए अर्जी दाखिल करता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जमानत कितने प्रकार के होते हैं, जमानत दिए जाने का क्या प्रावधान है तथा कब और किन परिस्थितियों में जमानत मिलती है?

 

जमानत के बारे में जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि किन-किन मामलों में जमानत मिलती है ?



जमानत के प्रावधान
 

अपराध दो तरह के होते हैं

जमानती अपराध  (Bailable Offence)

गैर-जमानती अपराध  (Non-Bailable Offence)


जमानती अपराध


जमानती अपराध में मारपीट, धमकी, लापरवाही से गाड़ी चलाना आदि मामले आते हैं। अर्थात वैसे मामले जिसमें तीन साल या उससे कम की सजा हो।

CrPC की धारा 436 के अन्तर्गत जमानती अपराध में न्यायालय द्वारा जमानत दे दी जाती है।

 

कुछ परिस्थितियों में CrPC की धारा 169 के अन्तर्गत थाने से ही जमानत दिए जाने का प्रावधान है। आरोपी थाने में बेल बॉन्ड भरता है और फिर उसे जमानत दे दी जाती है।

 

गैर-जमानती अपराध


गैर-जमानती अपराध में डकैती, लूट, हत्या, हत्या की कोशिश, गैर-इरादतन हत्या, रेप, अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण आदि आते हैं। इस तरह के मामलों में न्यायालय के सामने तथ्य पेश किए जाते है और फिर न्यायालय द्वारा जमानत पर फैसला लिया जाता है।

 

Court जमानत देते समय आरोपी का Criminal Background, लगाए गए आरोप में दिए जाने वाले सजा, आरोप के तथ्यों आदि की जाँच करता है उसके बाद जमानत देने या न देने का फैसला करता है।


जमानत के प्रकार

 

अग्रिम जमानत अग्रिम जमानत से तात्पर्य यदि आरोपी को पहले से ज्ञान हो गई हो कि वह किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वह गिरफ्तारी से बचने के लिए CrPC की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की माँग कर सकता है। अर्थात आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।

Court जब किसी आरोपी को जमानत देता है तो आरोपी को जमानती के लिए तथा बेल बन्ड भरने का निर्देश दे सकता है।

 

रेग्युलर बेल जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में वाद पेन्डिंग होता है, तब आरोपी CrPC की धारा 439 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है। अर्थात जब निचली अदालत से CrPC की धारा 437 के अंतर्गत जमानत की अर्जी खारिज कर दी जाती है तब उच्च न्यायालय में CrPC की धारा 439 के अंतर्गत अर्जी दाखिल किया जाता है।

ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट केस की स्थिति के आधार पर फैसला देता है। इसके तहत आरोपी को अंतरिम जमानत या रेग्युलर बेल दी जाती है।

 

CrPC Section 436(A)

यदि आरोपी किसी मामले में ट्रायल के दौरान (under trial) जेल में है तथा लगाए गए आरोप में जितने दिन की सजा हो सकती है उससे आधा या आधे से अधिक समय जेल में बीता चुका है तो CrPC की धारा 436(A) के तहत कोर्ट में जमानत के लिए अपील कर सकता है।




जमानत के प्रावधान           




चार्जशीट न होने पर बेल का प्रावधान


यदि पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं किया जाता है तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है चाहे मामला बेहद गंभीर ही क्यों न हो।


वह मामला जिसमें 10 साल या उससे अधिक के सजा का प्रावधान है, उसमें गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना आवश्यक होता है। यदि इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो CrPC की धारा 167(B) के तहत जमानत दिए जाने का प्रावधान है। जबकि 10 साल से कम की सजा वाले मामलों में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना अनिवार्य होता है, नहीं करने पर जमानत का प्रावधान है।

 


जमानत के प्रावधान    


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By ….

Ashok Kumar Singh, Advocate

            (Criminal & Accident Claim)  




                             

 


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