कपल कोर्ट मैरिज कैसे करें ? How to do couple court marriage?
कपल कोर्ट मैरिज कैसे करें ?
How to do couple court
marriage?
दोस्तों आज हम
आप को इस लेख के माध्यम से कोर्ट मैरिज के बारे में बताने वाले हैं की, कोर्ट
मैरिज कैसे करें ?, कोर्ट मैरिज कौन कर सकता हैं?, कोर्ट मैरिज
कौन नही कर सकता हैं?, क्या कोर्ट मैरिज करने के लिए माता-पिता की
मंजूरी अनिवार्य हैं या नही?, क्या कोर्ट मैरिज में पुनर्विवाह किया
जा सकता है या नही?।
कोर्ट मैरिज करने के लिए कोर्ट मैरिज
की पूरी प्रक्रिया क्या हैं?, यानि कोर्ट मैरिज
करने के लिए क़ानूनी प्रक्रिया क्या हैं?, क्या करना होगा?, कोर्ट मैरिज के लिए कहां आवेदन देना होगा?, कोर्ट
मैरिज कैसे होगी ? विवाह अधिकारी कौन होता है ?, साथ
ही बहुत सारी गलत धारणाएं भी है कोर्ट मैरिज से संबंधित जो आज हम जानंगे इसके बारे
में । दोस्तों इस लेख का उद्देस आप सभी तक Legal Awareness की
जानकारी देना हैं,
तो आइए आज हम एक-एक करके इन सारी
बातों को जानते हैं और बारीकी से समझने का प्रयास करते हैं।
लेकिन कोर्ट मैरिज के बारे में मैं आप को एक बात पहले ही बता देने चाहता हूँ की कोर्ट मैरिज की पूरी प्रक्रिया भारत देश में एक सामान ही हैं।
सबसे पहले हमारे देश भारत में 1954 में एक
क्रांति हुई एक कानून के द्वारा। और इसी क्रांति से निकल कर एक कानून आया जो कोर्ट
मैरिज से संबंधित हैं और इस कानून का नाम विशेष विवाह अधिनियम 1954 है।,यह
कानून प्रत्येक प्यार करने वाले दोस्तों पर लगती है, लेकिन कोर्ट मैरिज करने के लिए कुछ
नियम और शर्ते हैं। जिसका पालन होने पर ही कपल आपस में विवाह् कर
सकते हैं, जैसे
की इसी कानून से समन्धित एक शर्त है की अगर कपल कोर्ट मैरिज करना चाहते हैं तो यह
उनके उम्र पर भी निर्भर करता है।
जैसे की लड़की
की उम्र 18 साल से
अधिक होनी चाहिए। और वही लड़के
की उम्र 21 वर्ष
से अधिक होनी चाहिए। अगर ऐसा है तो कानून उनके साथ है। और ऐसे में
कानून बिना किसी जाति धर्म के भेदभाव और रुकावट के बिना उन दोनों को विवाह करने का
अधिकार देता है।
एक बात जो सबसे जरूरी है और आप को
अवश्य पता होना चाहिए की विवाह का अधिकार एक मानव अधिकार है।
कोर्ट मैरिज से समन्धित कानून विशेष विवाह अधिनियम 1954 क्या हैं।?
(विशेष विवाह अधिनियम 1954)
यह कानून अंतर जाति और अंतर धर्म विवाह से संबंधित कानून है।इस कानून में अंतर जाति विवाह दो अलग-अलग जातियों से संबंधित लोगों के बीच एक विवाह की प्रक्रिया होती है। और इस अधिनियम में हिंदू,मुस्लिम ईसाई सिख जैन और बौद्धों के विवाह को शामिल किया गया है। यह अधिनियम पूरे भारत देश पर लागू होता है, जैसे की मैंने आप को पहले ही बताया हैं। विशेष विवाह अधिनियम न केवल विभिन्न जातियों और धर्मों से संबंधित कानून हैं। बल्कि यह विदेशों में रहने वाले हर भारतीय नागरिकों के लिए भी है।
दोस्तों अभी तक हमने कोर्ट मैरिज से जुड़े कानून को जाना और अब हम जानने का प्रयास करेंगे की कोर्ट मैरिज करने के पहले या कोर्ट मैरिज करने के बाद,क़ानूनी रूप से विशेष विवाह अधिनयम में वो कौन-कौन सी महत्वपूर्ण बाते क्या हैं जो आपको पता होना चाहिए ।
कोर्ट मैरिज से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बाते।
कोर्ट मैरिज करने के बाद कुछ नियम और शर्ते है और साथ ही कुछ महत्वपूर्ण बाते भी जो कोर्ट मैरिज के कानून
यानि विशेष विवाह अधिनियम में कही गई हैं, और इन महत्वपूर्ण बातो यानि अधिनियम का पालन करना हर
एक कपल के लिए हैं। जो कोर्ट मैरिज करना चाहते है या कर लिए है, बता दे की कोर्ट मैरिज करने वाले हर एक कपल पर ये अधिनियम स्वता ही लागु हो जाता है।
कोर्ट मैरिज करने के बाद वे कौन से क़ानूनी प्रावधान हैं जो स्वता ही लागु हो जाती हैं।
- शादी के पहले वर्ष तलाक पर प्रतिबंध लगाया गया है। यानी विवाह का कोई भी पक्ष (लड़का या लड़की ) 1 वर्ष की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व यानि पहले तलाक हेतु न्यायालय में याचिका नहीं लगा सकता है।
- लेकिन ऐसे मामलों में जहां माननीय न्यायालय को यह लगता है कि याचिकाकर्ता द्वारा असाधारण कठिनाइयों का सामना किया गया है या प्रतिवादी द्वारा असाधारण भ्रष्टता दिखाई गई है। तब तलाक की याचिका को जारी रखा जा सकता है।
- परंतु यदि न्यायालय द्वारा यह पाया जाता है। की प्रतिवादी द्वारा तलाक की याचिका दायर करने हेतु न्यायालय को भ्रमित किया गया है, तब न्यायालय धारा 29 के तहत 1 वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद ही प्रभावी होने का आदेश दे सकती है।
कोर्ट मैरिज से समन्धित कई सवालों के जवाब जो हर कपल के मन
में
होता है जिसका उत्तर हर कपल को जानना काफी महत्वपूर्ण हैं
Ø
क्या पुनर्विवाह किया जा सकता है ?
विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत व्यक्तियों के पुनर्विवाह
का सवाल उठता है, तो यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए। कि जहां विवाह भंग हो गया है
और अपील का अधिकार समाप्त हो गया है। या निर्देशित समय सीमा में याचिका नहीं लगाई
गई है या अपील खारिज हो जाती है। तब जैसा कि अधिनियम में दिया गया है कि पक्षकार पुनर्विवाह कर सकते हैं।
अब प्रश्न यह भी आता हैं की
क्या विवाह ऑनलाइन किया जा सकता हैं, तो आइये देखते हैं।
Ø
क्या विवाह पंजीकरण ऑनलाइन किया जा
सकता है ?
नहीं। विवाह पंजीकरण ऑनलाइन नहीं किया जा सकता हैं, इसके लिए आप को विवाह अधिकारी जिसे Marriage
officer कहते हैं, के सामने स्वयं उपस्थित होना आवश्यक है अब प्रश्न यह भी आता हैं की क्या कोर्ट
मैरिज करने के लिए माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य हैं या नही,
Ø कोर्ट
मैरिज के लिए क्या माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य है ?
कोर्ट मैरिज के लिए माता-पिता की मंजूरी जरूरी नहीं है,बशर्ते दिए गए
नियमों और शर्तो का पालन किया गया हो।
अगर
कोई कपल कोर्ट मैरिज करता हैं तो उन्हें किन-किन बातो व नियन व शर्तो का पता होना
आवश्यक हैं।
कोर्ट मैरिज के नियम व आवश्यक शर्तें।
-
कोर्ट मैरिज की सबसे पहली शर्त यह हैं की कोई भी कपल जो आपस में प्रेम
विवाह यानि कोर्ट मैरिज करना चाहते है, उन दोनों में से किनी का भी पूर्व विवाह ना हुआ हो और अगर यदि हुआ
भी है।
तो विवाह में शामिल होने वाले दोनों पक्षों की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित न हो साथ ही कोई पूर्व विवाह वैध न हो।
तो विवाह में शामिल होने वाले दोनों पक्षों की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित न हो साथ ही कोई पूर्व विवाह वैध न हो।
कोर्ट मैरिज की दूसरी शर्त यह है की दोनों पक्ष वैध सहमति देने
के लिए सक्षम होने चाहिए, अपने मन की बात कह कर दोनों
पक्षों को स्वेच्छा से इस विवाह में शामिल होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि दोनों
पक्षकार समझबूझ रखने वाले व्यक्ति हो, पागल ना हो।
कोर्ट मैरिज की तीसरी शर्त यह है की पुरुष की आयु 21 वर्ष से ज्यादा तथा महिला की
आयु 18
वर्ष या इससे
ज्यादा होना जरूरी है।
कोर्ट मैरिज की चौथी शर्त यह
भी है की दोनों पक्षकार संतान की उत्पत्ति के लिए शारीरिक रूप से योग्य
होने चाहिए।
कोर्ट मैरिज की पाँचवी शर्त में अनुसूची 1
के अनुसार दोनों पक्षों का निषिद्ध संबंधों की सीमा से बाहर होना
चाहिए।
निषिद्ध संबंधों का क्या मतलब है? /What does forbidden relationship
mean?
यह निषिद्ध
संबंध क्या है? इसकी जानकारी हमें अधिनियम की अनुसूची 1 में मिलती है।
अनुसूची 1
में लंबे प्रावधान दिए गए हैं।
जैसे उदाहरण के
लिए भाई बहन निषिद्ध अनुसूची में आते हैं। या सगोत्री विवाह नहीं हो सकता। निषिद्ध अनुसूची में आते हैं।
निषिद्ध अनुसूची कि एक लंबी सूची है जिसमे
साफ-साफ लिखा है कि कौन
कपल या लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते ?
लेकिन अगर कोई धर्म इस केस में कोई अनुमति देता है। तो वहां विवाह संभव हो भी सकता है,इसकी पूरी
जानकारी हमें अनुसूची 1 में मिलती है।
अभी तक हमने कोर्ट मैरिज से समन्धित बहुत सी जानकारिया प्राप्त की
हैं, जिसमे हमने कई सारे नियम शर्ते व क़ानूनी बातो को
जाना,और आखिर कार अब हम जानंगे की कोर्ट मैरिज करने के
लिए क़ानूनी रूप से क्या उपचार हैं,मतलब प्रेम विवाह करने के लिए कपल क्या कर सकते हैं,और क्या नही कर सकते हैं?। ताकि जिससे
उन्हें बाद में परेशानीयों का सामना न करना पड़े और कानून उनके साथ हो,साथ ही हम यह भी जानंगे की कोर्ट मैरिज करने के लिए हमे क्या करना
होगा कहाँ आवेदन देने होगा,और कई सारे
प्रश्न भी है कोर्ट मैरिज से समन्धित जिसे हम देखेंगे। तो आइये जानते हैं की कोर्ट मैरिज के लिए Legal
process यानि क़ानूनी प्रिक्रिया क्या हैं। Friends
हमने कोर्ट मैरिज के सभी क़ानूनी प्रक्रियाओं को कुल 4
चरणों में विभाजित किया हैं ताकि आप को सारी बाते बारकी से समझ में आ
सके।
कोर्ट मैरिज के लिए क़ानूनी प्रक्रियाएं।
【चरण 1 के अनुसार】
Ø
कोर्ट
में विवाह करने के लिए सर्वप्रथम जिले के विवाह अधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए।
प्रश्न सूचना किसके द्वारा दी जानी चाहिए ?
Ø
विवाह
में शामिल होने वाले पक्षों द्वारा लिखित में सूचना दी जानी चाहिए। यह पक्षकार
यानि कपल सूचना देंगे।
प्रश्न सूचना किसे दी जाएगी ?
Ø
सूचना
उस जिले के विवाह अधिकारी को दी जाएगी जिस राज्य के जिले में कपल विवाह करना चाहते
हैं,जिसमें
कम से कम एक पक्ष ने सूचना की तारीख से 1
महीने पहले तक शहर में निवास किया होना
जरूरी हैं। अभी-अभी आप ने जो ऊपर पढ़ा आइए इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।
उदाहरण के तौर पर यदि पुरुष और महिला बिहार में रहते हैं और उत्तर प्रदेश में
विवाह करना चाहते हैं। तो उनमें से किसी एक को सूचना की तारीख से 30 दिन पहले उत्तर प्रदेश यानी UP
में निवास करना अनिवार्य है।
प्रश्न सूचना किस प्रारूप में दिया जाना चाहिए ?
Ø
सूचना
के लिए इस कानून की अनुसूची 2 में प्रारूप दिया गया है। जिसमें आयु और
निवास के प्रमाण दस्तावेज भी संलग्न होने चाहिए।
【चरण 2 के अनुसार】
प्रश्न सूचना कौन प्रकाशित करता है ?
Ø
जिले
के विवाह अधिकारी जिसके सामने सूचना जारी की गई थी वहीं सूचना प्रकाशित करता है।
प्रश्न सूचना कहां प्रकाशित की जाती है ?
Ø
सूचना
की एक प्रति कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर तथा एक प्रति उस जिला कार्यालय में
जहां विवाह पक्ष स्थाई रूप से निवास करते हैं प्रकाशित की जाती है।
प्रश्न आपत्ती
कौन प्रस्तुत कर सकता है ?
Ø
कोई भी
व्यक्ति आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। और आपत्ति के आधार अधिनियम के अध्याय 2 के अनुभाग 4 में दी गई है। जो व्यक्ति आपत्ति प्रस्तुत करना चाहता है। वह अपनी आपत्तियों को विवाह अधिकारी यानि Marriage officer के
समक्ष रखेगा।
प्रश्न आपत्ति कहां प्रस्तुत की जाती है ?
Ø
जिले
के विवाह अधिकारी के सामने आपत्ति प्रस्तुत की जाती है।
प्रश्न आपत्ति के आधार क्या है ?
Ø
दी गई
शर्तें तथा अधिनियम के अध्याय दो अनुभाग 4
में दी गई सूची आपत्ति के आधार हैं।
प्रश्न यदि आपत्ति स्वीकार कर लिया जाए तो उसके परिणाम क्या होंगे ?
Ø
आपत्ति
प्रस्तुति के 30 दिनों के भीतर विवाह अधिकारी को जांच पड़ताल करना जरूरी है यदि
प्रस्तुत आपत्तियों को सही पाया गया तो विवाह संपन्न नहीं हो पाएगा।
प्रश्न स्वीकार की गई आपत्तियों पर क्या कोई उपाय है ?
Ø
स्वीकार
की गई आपत्तियों पर कोई भी पक्ष अपील दर्ज कर सकता है।
प्रश्न अपील किसके पास दर्ज की जा सकती है ?
Ø
अपील
अस्थान्या जिला न्यायालय में विवाह अधिकारी के क्षेत्र में दर्ज की जा सकती है।
प्रश्न अपील
कब दर्ज की जा सकती है ?
Ø
आपत्ती
स्वीकार होने के 30 दिन के
भीतर अपील दर्ज की जा सकती है।
आइए इसे एक उदाहरण के रूप में
समझने का प्रयास करते हैं।
यदि महिला और पुरुष ने एप्लीकेशन
लगाया है,विवाह करने के लिए और मान लीजिए कि
इनमें से किसी एक की पहले से ही जीवित कोई पति या पत्नी है। तो वह आपत्ति लगाता/लगाती है, कि इसका विवाह पहले हो चुका है,और इसको दूसरा विवाह करने का अधिकार नहीं है।
विवाह अधिकारी जांच करता है और अगर वह यह पता है
कि पहले इसने विवाह कर लिया है और इसकी पत्नी या पति जीवित है। तो वह विवाह को
नहीं होने देगा। और यह विवाह रद्द कर दिया जाएगा। आशा करता हूं कि अभी तक आपने
यहां तक की बात को समझ लिया होगा।
चरण
3 में और देखते हैं कि विवाह से संबंधित इसमें
क्या प्रावधान है।
【चरण 3 के अनुसार】
Ø प्रश्न विवाह घोषणा पत्र पर कौन हस्ताक्षर कर सकता
है
दोनों पक्ष जो शादी करना चाहते हैं
यानि, पति और पत्नी और साथ में तीन गवाह
चाहिए होते हैं। जो विवाह अधिकारी की उपस्थिति में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करते
हैं। विवाह अधिकारी भी घोषणा को प्रतिहस्ताक्षरित यानी Countersigned करता है।
Ø प्रश्न घोषणा का लेख और प्रारूप क्या है ?
घोषणा
का प्रारूप अधिनियम की अनुसूचित 3 में दी
गई है। यह घोषणा विवाह अधिकारी ही तैयार करवाता है।
प्रश्न विवाह
किस स्थान पर करना होगा ?
विवाह का स्थान विवाह अधिकारी का कार्यालय हो सकता है। या उचित दूरी के
भीतर किसी जगह (मंदिर) पर विवाह का स्थान हो सकता है।
अपने ने
मेरे इस छोटे से लेख के माध्यम से जाना की विवाह का अधिकार एक मानव अधिकार है। और कोई भी वयस्क स्त्री और पुरुष आपस में विवाह
कर सकते हैं। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी एक जजमेंट दिया है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है भारत में।
यानि
समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना गया है। इस बात को मैं इस लेख के माध्यम से
स्पष्ट कर दूं। लेकिन धारा 377
आईपीसी समलैंगिक संबंधों को अपराध बताती है। और कोई महिला महिला या पुरुष
पुरुष के साथ बनाया गया शारीरिक संबंध ही समलैंगिकता कहलाता है। लेकिन सुप्रीम
कोर्ट ने अपनी जजमेंट में यह नहीं कहा है कि महिला महिला या पुरुष पुरुष को आपस
में विवाह करने का अधिकार है।
तो यह
अधिकार अभी नहीं है भारत में। कंडीशन एक ही है कि महिला की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए और पुरुष की उम्र 21
वर्ष से अधिक होनी चाहिए। और महिला पुरुष ही इस
विवाह कानून के संबंध में बंध सकते हैं।
इस
लेख का मुख्य उदेश्य क्या है
इस लेख का मुख्य उदेश्य भारत के प्रत्येक नागरिक को जागरूक करना हैं, और साथ ही यह लेख उनके लिए भी बहुत ज्यादा जरूरी हैं जो कोर्ट मैरिज यानि प्रेम विवाह करना चाहते हैं क्योकि इस लेख का मुख्य उदेश्य भी यही हैं।
दोस्तों जैसा की हम जानते हैं की कोर्ट मैरिज तो सभी करते हैं, कोई मंदिर में करता हैं, तो कोई कही और करता हैं, ये सब ठीक हैं क्योकि विवाह मंदिरों या किसी पवित्र स्थान पर ही होना चाहिए, ऐसा करना सही हैं, लेकिन बहुत से लोग कोर्ट मैरिज करने के बाद भी सुखी नही रह पाते उन्हें हमेश से एक डर एक घवराहट सा अपने मन में लगा रहता हैं की कोई कुछ कर न दे, और करे भी क्यों न क्योकि इसके जिम्मेवार भी वे खुद होते हैं।
ऐसा इसलिए क्योकि उन कपल को यह बात पता होना चाहिए की कोर्ट मैरिज यानि क़ानूनी तरीके से की गई एक विवाह की प्रिक्रिया हैं,जिसमे हम यानि कपल अपनी विवाह के लिए कानून के पास जाते हैं। और फिर क़ानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद कपल आपस में विवाह कर सकते हैं, इस तरह से विवाह करने पर कपल क़ानूनी रूप से सुरक्षित होंगे, क्योकि क़ानूनी तरीके से प्रेम विवाह करने पर उन्हें कानून का पूरा-पूरा समर्थन होता हैं, और इसलिए क़ानूनी रूप से विवाह करने के बाद उन्हें कोई डर भय नही लगता क्योकि पूरा कानून उनके साथ खड़ा हैं।
लेकिन अफ़सोस की बात तो यह हैं की कई सारे ऐसे कपल हैं,जो लव मैरिज यानि कोर्ट मैरिज क़ानूनी तरीके से नही करते हैं,और फिर उन्हें बाद में कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं, जिसके वजह से कई ऐसे कपल भी होते हैं जो आत्महत्या कर लेते हैं।
और अब ऐसा न हो इसके लिए यह लेख लिखा गया हैं।
अगर आप अपनी कानूनी
समास्या का समाधान ढूंढ रहे है
इंटरनेट या सोशल
मीडिया एक एडवोकेट/वकील नही है न ही आप है। अपने कानूनी समास्या के बारे में एक
वास्तविक एडवोकेट/वकील से जरूर संपर्क
करे
अगर आपका उपरोक्त लेख से संबधित कोई सवाल या सुझाव है तो आप हमें कमेंट करके
जरूर बताये. और इस पोस्ट को सभी के साथ शेयर जरूर करें , कानूनी सहायता - न्याय और विधि (Legal Aid - Justice
and Law) को Follow करते रहे , जिससे आपको हमारे सभी नए पोस्ट की जानकारी लगातार मिलती रहे.
By ….
Ashok Kumar Singh, Advocate
(Criminal
& Accident Claim)
Agr kisi ke husband ki dath ho gyi ho aur dath pruf na ho to kya wo 2nd marriage kr sakti hai ?
जवाब देंहटाएं